सुख प्राप्ति के साधन 4 by indianculture1

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सुख प्राप्ति के साधन 4
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 इंसान सुखी तो रहना चाहते हैं, पर सुखी रहने के उपाय जान बूझ कर जानना नही चाहते।
  हम सभी जानते हैं कि, इस सृष्टि में दृश्यमान प्रत्येक वस्तु नाशवान हैं। इसको एक दिन नष्ट होना ही हैं। फिर भी हम इनको इकट्ठा करने के लिए दुखी हो रहे हैं।कुछ वस्तुए स्थायी है जैसे- भूमि, इसके लिए लोग कटते मरते हैं। पर कटु सत्य ये हैं, कि धरती तो स्थाई हैं पर हम स्थाई नही हैं। ये शरीर दृश्यमान वस्तु हैं, इसका नाश निश्चित हैं।
  एक ओर बात- ये धरती स्थाई हैं, पर इस पर मालिकाना हक जताने वाला स्थाई नही हैं। आज जिस भूमि के टुकड़े को तुम अपना बता रहे हो, वो कल किसी ओर का था, आने वाले कल को उसका मालिक कोई और बनेगा।
  एक शहर में एक धनाढ्य सेठजी रहा करते थे। जब वे बूढ़े हो गए तो व्यापार अपने बच्चों में बांट दिया और स्थाई सम्पति का बंटवारा कर रहे थे। दोनों लड़को को बोल दिया कि तुम अपनी सुविधानुसार मिल कर बांट लो। बाकी सबका बंटवारा हो गया, एक छोटे से जमीन के टुकड़े को लेकर दोनों भाइयों में विवाद हो गया। बात तू-तू, मैं-मैं से हाथापाई तक आ गई।
  सेठजी देखते रहे, जब दोनों भाइयों ने एक दूसरे का गिरेबान पकड़ लिया तो सेठजी जोर जोर से हंसने लगे। दोनों भाई लड़ना भूलकर पिताजी से हंसने का कारण पूछने लगे। पिता ने कहा तुम इस छोटे से टुकड़े के लिए लड़ना बन्द करो तो मैं तुम्हे बहुत बड़ा खजाना बता सकता हूं। पर तुम्हे ये विवाद यही छोड़कर मेरे साथ चलना पड़ेगा।
तीनो लोग गांव के लिए निकले। खचाखच भरी बस में दो लोगो के बैठने की सीट मिल पाई, जिसमे से एक पर तो पिताजी को बिठा दिया, दूसरी सीट पर दोनों भाई बारी बारी से बैठते हुए दश बारह घण्टे का सफर तय कर गांव पहुचे। वहां बड़ी सी हवेली में पहुचे जो खण्डहर में तब्दील होने की तैयारी में थी। हवेली में कही कबूतर तो कही चमगादड़ो ने घोसलें डाल   रखे थे।
सेठजी ने बताया कि, एक दिन मेरे पिताजी ने हम दोनों भाइयों को बंटवारे के लिए बोला। हम दोनों भाई इस हवेली के लिए बहुत लड़े। मेरे भाई ने मेरे लिए हवेली तो छोड़ दी पर रिश्ता भी हमेशा के लिए खत्म कर, कहीं परदेश में जाकर बस गए, जिनसे लाख चाहने के बावजूद मै वापिस नही मिल पाया। हालात ऐसे बने कि मुझे भी ये हवेली छोड़कर शहर बसना पड़ा। जिस हवेली के लिए मैने अपने भाई को खोया, आज वही हवेली खण्डहर हो रही हैं।
 जमीन जायदाद बस की सीट की तरह हैं। जिसका असल मे कोई मालिक नही होता। जितनी दूरी तक मिली, बैठ लिए, हम ने सीट छोड़ी, वो किसी अन्य की तब तक के लिए हो गयी, जहां तक उसे जाना हैं। फिर उसने छोड़ी तो कोई अन्य बैठा।
  उसी तरह ये स्थाई सम्पत्ति, आज तक न जाने कितने लोगों ने इस पर मालिकाना हक जताया होगा?
क्या हुआ उनका?
साथ ले जा पाए?
या ये सम्पत्ति आज तक अपने उस मालिक के इंतजार में किसी अन्य की न हुई।
ये बात समझ मे आ जाये तो सारे दुःख अपने आप कट जाएंगे और हम एक आनन्दमय जीवन जी पाएंगे।

ॐ शांति

आपका- indianculture1

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